मध्य प्रदेश सरकार ने बेसहारा गौवंश की समस्या पर कड़ा रुख अपनाया है। अब सरपंच और गौशाला संचालकों के लिए बेसहारा पशुओं को आश्रय देने से मना करना संभव नहीं होगा। प्रशासन ने साफ निर्देश जारी करते हुए कहा है कि ऐसा करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। ग्रामीणों की मांग थी कि पंचायतें और गौशाला संचालक पशुओं की जिम्मेदारी से भाग नहीं सकते, जिस पर प्रशासन ने निर्णायक कदम उठाया है।
प्रशासन ने क्या निर्देश जारी किए?
जिला प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि ग्राम पंचायतों और गौशालाओं की जिम्मेदारी है कि वे अपने क्षेत्र में बेसहारा घूम रहे गौवंश के लिए तत्काल व्यवस्था करें। संसाधनों या जगह की कमी बताकर गौवंश को आश्रय देने से इंकार नहीं किया जा सकेगा। प्रशासन ने चेतावनी दी है कि इन निर्देशों का पालन नहीं करने वालों के विरुद्ध कार्रवाई निश्चित है।
यदि कोई किसान गौमाता को संभालने में सक्षम नही है और वह गौशाला में गौवंश को छोड़ने आता है तो मना नही कर सकते है।
प्रदेश में गौशालाओं की वर्तमान स्थिति
मध्य प्रदेश में वर्तमान में लगभग 618 सरकारी मान्यता प्राप्त गौशालाएं और करीब 1,800 अन्य पंचायतों द्वारा संचालित गौशालाएं हैं, जिनमें लाखों पशु पाले जा रहे हैं। सरकार इन गौशालाओं को आर्थिक सहायता प्रदान करती है, ताकि वे पशुओं की देखभाल ठीक से कर सकें।
गौवंश पर सरकार द्वारा किया जाने वाला खर्च
सरकार ने बेसहारा गौवंश के लिए लगभग ₹44 से ₹50 प्रतिदिन खर्च निर्धारित किया है। यह राशि पशुओं के चारे, चिकित्सा सुविधा, पानी और अन्य आवश्यक व्यवस्थाओं पर खर्च होगी। प्रशासन के अनुसार यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कोई भी पशु भूखा या बीमार न रहे।
ग्रामीणों को होगा फायदा
इस नई व्यवस्था के लागू होने से गांवों में पशुओं की वजह से फसलों का नुकसान रुकेगा, सड़क दुर्घटनाओं में कमी आएगी और स्वच्छता में भी सुधार होगा। गांवों में रहने वाले लोग लंबे समय से इस समस्या के समाधान की मांग कर रहे थे, जो अब संभव होता दिख रहा है।
आम जनता और पंचायतों की भूमिका
इस पहल को सफल बनाने के लिए प्रशासन पंचायतों को आर्थिक और तकनीकी सहायता देगा। स्थानीय लोगों को भी प्रेरित किया जाएगा कि वे गौवंश की देखभाल में अपनी भूमिका निभाएं।
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Disclaimer: यह जानकारी विभिन्न सरकारी स्रोतों से जुटाई गई है। विस्तृत जानकारी के लिए संबंधित विभाग से संपर्क करें।